31-05-72   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन

भविष्य में अष्ट देवता और भक्ति में इष्ट बनने का पुरूषार्थ

अपने आपको सदा शिवशक्ति समझ कर हर कर्म करती हो? अपने अलंकार वा अष्ट भुजाधारी मूर्त सदा अपने सामने रहती है? अष्ट भुजाधारी अर्थात् अष्ट शक्तिवान। तो सदा अपने अष्ट शक्ति-स्वरूप स्पष्ट रूप में दिखाई देते हैं? शक्तियों का गायन है ना -- शिवमई शक्तियाँ। तो शिव बाबा की स्मृति में सदा रहती हो? शिव और शक्ति - दोनों का साथ-साथ गायन है। जैसे आत्मा और शरीर - दोनों का साथ है, जब तक इस सृष्टि पर पार्ट है तब तक अलग नहीं हो सकते। ऐसे ही शिव और शक्ति - दोनों का भी इतना ही गहरा सम्बन्ध है, जो गायन है शिवशक्तिपन का। तो ऐसे ही सदैव साथ का अनुभव करती हो वा सिर्फ गायन है? सदा साथ ऐसा हो जो कोई भी कब इस साथ को तोड़ न सके, मिटा न सके। ऐसे अनुभव करते हुए सदा शिवमई शक्ति-स्वरूप में स्थित होकर चलो तो कब भी दोनों की लगन में माया विघ्न डाल नहीं सकती। कहावत भी है - दो दस के बराबर होते हैं। तो जब शिव और शक्ति दोनों का साथ हो गया तो ऐसी शक्ति के आगे कोई कुछ कर सकता है? इन डभले शक्तियों के आगे और कोई भी शक्ति अपना वार नहीं कर सकती वा हार खिला नहीं सकती। अगर हार होती है वा माया का वार होता हैय्; तो क्या उस समय शिव-शक्ति-स्वरूप में स्थित हो? अपने अष्ट-शक्तियाँ-सम्पन्न सम्पूर्ण स्वरूप में स्थित हो? अष्ट शक्तियों में से अगर कोई भी एक शक्ति की कमी है तो अष्ट भुजाधारी शक्तियों का जो गायन है वह हो सकता है? सदैव अपने आपको देखो कि हम सदैव अष्ट शक्तियाँधारी शिव-शक्ति होकर के चल रही हैं? जो सदा अष्ट शक्तियों को धारण करने वाले हैं वही अष्ट देवताओं में आ सकते हैं। अगर अपने में कोई भी शक्ति की कमी अनुभव करते हो तो अष्ट देवताओं में आना मुश्किल है। और अष्ट देवता सारी सृष्टि के लिए इष्ट रूप में गाये और पूजे जाते हैं। तो भक्ति मार्ग में इष्ट बनना है वा भविष्य में अष्ट देवता बनना है तो अष्ट शक्तियों की धारण सदैव अपने में करते चलो। इन शक्तियों की धारणा से स्वत: ही और सहज ही दो बातों का अनुभव करेंगे। वह कौनसी दो बातें? सदा अपने को शिव-शक्ति वा अष्ट भुजाधारी अथवा अष्ट शक्तिधारी समझने से एक तो सदा साथीपन का अनुभव करेंगे और दूसरा सदा अपनी स्टेज साक्षीपन की अनुभव करेंगे। एक साथी और दूसरा साक्षी, यह दोनों अनुभव होंगे, जिसको दूसरे शब्दों में साक्षी अवस्था अर्थात् बिन्दु रूप की स्टेज कहा जाता है और साथीपन का अनुभव अर्थात् अव्यक्त स्थिति का अनुभव कहा जाता है। अष्ट शक्ति की धारणा होने से इन दोनों स्थिति का अनुभव सदा सहज और स्वत: करेंगे। ऐसे अनुभव करेंगे जैसे कोई साकार में साथ होता है तो फिर कब भी अपने में अकेलापन वा कमजोरीपन अनुभव नहीं होती है। इस रीति से जब सर्वशक्तिवान शिव और शक्ति दोनों की स्मृति रहती है तो चलते-फिरते बिल्कुल ऐसे अनुभव करेंगे जैसे साकार में साथ हैं और हाथ में हाथ है। गाया जाता है ना - साथ और हाथ। तो साथ है बुद्धि की लगन और सदा अपने साथ श्रीमत रूपी हाथ अनुभव करेंगे। जैसे कोई के ऊपर किसका हाथ होता है तो वह निर्भय और शक्ति-रूप हो कोई भी मुश्किल कार्य करने को तैयार हो जाता है। इसी रीति जब श्रीमत रूपी हाथ अपने ऊपर सदा अनुभव करेंगे, तो कोई भी मुश्किल परिस्थिति वा माया के विघ्न से घबरायेंगे नहीं। हाथ की मदद से, हिम्मत से सामना करना सहज अनुभव करेंगे। इसके लिए चित्रों में भक्त और भगवान् का रूप क्या दिखाते हैं? शक्तियों का चित्र भी देखेंगे तो वरदान का हाथ भक्तों के ऊपर दिखाते हैं। मस्तक के ऊपर हाथ दिखाते हैं। इसका अर्थ भी यही है कि मस्तक अर्थात् बुद्धि में सदैव श्रीमत रूपी हाथ अगर है तो हाथ और साथ होने कारण सदा विजयी हैं। ऐसा सदैव साथ और हाथ का अनुभव करते हो? कितनी भी कमजोर आत्मा हो लेकिन साथ अगर सर्वशक्तिवान है तो कमजोर आत्मा में भी स्वत: ही भले भर जाता है। कितना भी भयानक स्थान है लेकिन साथी शूरवीर है तो कैसा भी कमजोर शूरवीर हो जाएगा। फिर कब माया से घबरायेंगे नहीं। माया से घबराने वा माया का सामना ना करने का कारण साथ और हाथ का अनुभव नहीं करते हो। बाप साथ दे रहे हैं, लेकिन लेने वाला ना लेवे तो क्या करेंगे? जैसे बाप बच्चे का हाथ पकड़ कर उनको सही रास्ते पर लाना चाहते हैं, लेकिन बच्चा बार-बार हाथ छुड़ा कर अपनी मत पर चले तो क्या होगा? मूँझ जाएगा। इस रीति एक तो बुद्धि के संग और साथ को भूल जाते हो और श्रीमत रूपी हाथ को छोड़ देते हो, तब मूँझते हो वा उलझन में आते हो। और श्रीमत रूपी हाथ को छोड़ देते हो तब मूँझते हो वा उलझन में आते हो अथवा कमजोर बन जाते हो। माया भी बड़ी चतुर है। कभी भी वार करने के लिए पहले साथ और हाथ छुड़ा कर अकेला बनाती है। जब अकेले कमजोर पड़ जाते हो तब माया वार करती है। वैसे भी अगर कोई दुश्मन किसी के ऊपर वार करता है तो पहले उनको संग और साथ से छुड़ाते हैं। कोई ना कोई युक्ति से उनको अकेला बना कर फिर वार करते हैं। तो माया भी पहले साथ और हाथ छुड़ा कर फिर वार करेगी। अगर साथ और हाथ छोड़ो ही नहीं तो फिर सर्वशक्तिवान साथ होते माया क्या कर सकती है? मायाजीत हो जायेंगे। तो साथ और हाथ को कब छोड़ो नहीं। ऐसे सदा मास्टर सर्वशक्तिवान बनकर के चलो। भक्ति में भी पुकारते हैं ना - एक बार हाथ पकड़ लो। तो बाप हाथ पकड़ते हैं, हाथ में हाथ देकर चलाना चाहते हैं फिर भी हाथ छोड़ देते हैं तो भटकना नहीं होगा तो क्या होगा? तो अब अपने आपको भटकाने के निमित्त भी स्वयं ही बनते हो। जैसे कोई भी योद्धा युद्ध के मैदान पर जाने से पहले ही अपने शस्त्र को, अपनी सामग्री को साथ में रख करके फिर मैदान में जाते हैं। ऐसे ही इस कर्मक्षेत्र रूपी मैदान पर कोई भी कर्म करने अथवा योद्धे बन युद्ध करने के लिए आते हो; तो कर्म करने से पहले अपने शस्त्र अर्थात् यह अष्ट शक्तियों की सामग्री साथ रख कर फिर कर्म करते हो? वा जिस समय दुश्मन आता है उस समय सामग्री याद आती है? तो फिर क्या होगा? हार हो जाएगी। सदा अपने को कर्मक्षेत्र पर कर्म करने वाले योद्धे अर्थात् महारथी समझो। जो युद्ध के मैदान पर सामना करने वाले होते हैं वह कभी भी शस्त्र को नहीं छोड़ते हैं। सोने के समय भी अपने शस्त्र को नहीं छोड़ते हैं। ऐसे ही सोते समय भी अपनी अष्ट शक्तियों को विस्मृति में नहीं लाना है अर्थात् अपने शस्त्र को साथ में रखना है। ऐसे नहीं - जब कोई माया का वार होता है उस समय बैठ सोचो कि क्या युक्ति अपनाऊं? सोच करते-करते ही समय बीत जाएगा। इसलिए सदैव एवररेडी रहना चाहिए। सदा अलर्ट और एवररेडी अगर नहीं हैं तो कहीं ना कहीं माया धोखा खिलाती है और धोखे का रिजल्ट क्या होता? अपने आपको देख कर ही दु:ख की लहर उत्पन्न हो जाती है। अपनी कमी ही कमी को लाती है। अगर अपनी कमी नहीं है तो कब भी कोई भी कमी नहीं आ सकती। बेगमपुर के बादशाह कहते थे ना। यह इस समय की स्टेज है जबकि गम की दुनिया सामने है। गम और बे-गम की अभी नॉलेज है। इसके होते हुए उस स्थिति में सदा निवास करते, इसलिये बेगमपुर का बादशाह कहा जाता है। भले बेगर हो लेकिन बेगर होते भी बेगमपुर के बादशाह हो। तो सदा इस नशे में रहते हो कि हम बेगमपुर के बादशाह हैं? बादशाह अथवा राजे लोगों में ऑटोमेटिकली शक्ति रहती है राज्य चलाने की। लेकिन उस ऑटोमेटिक शक्ति को अगर सही रीति काम में नहीं लगाते हैं, कहीं ना कहीं उलटे कार्य में फंस जाते हैं तो राजाई की शक्ति खो लेते हैं और राज्य पद गंवा देते हैं। ऐसे ही यहॉं भी तुम हो बेगमपुर के बादशाह और सर्व शक्तियों की प्राप्ति है। लेकिन अगर कोई ना कोई संगदोष वा कोई कर्मेन्द्रिय के वशीभूत हो अपनी शक्ति खो लेते हो तो जो बेगमपुर का नशा वा खुशी प्राप्त है वह स्वत: ही खो जाती है। जैसे वह बादशाह भी कंगाल बन जाते हैं, वैसे ही यहाँ भी माया के अधीन होने के कारण मोहताज, कंगाल बन जाते हैं। तब तो कहते हैं - क्या करें, कैसे होगा, कब होगा? यह सभी है कंगालपन, मोहताजपन की निशानी। कहां न कहां कोई कर्मेन्द्रियों के वश हो अपनी शक्तियों को खो लेते हैं। समझा? तो अष्ट शक्ति स्वरूप बेगमपुर के बादशाह हैं, इस स्मृति को कब भूलना नहीं। भक्ति में भी सदैव यही पुकारा कि सदा आपकी छत्रछाया में रहें। तो इस साथ और हाथ की छत्रछाया से बाहर क्यों निकलते हो? आज की पुरानी दुनिया में अगर कोई छोटे-मोटे मर्तबे वाले का भी कोई साथी अच्छा होता है तो भी अपनी खुमारी में और खुशी में रहते हैं। समझते हैं - हमारा बैकबोन पावरफुल है। इसलिए खुमारी और खुशी में रहते हैं। आप लोगों का बैकबोन कौन है! जिनका सर्वशक्तिवान् बैकबोन है तो कितनी खुमारी और खुशी होनी चाहिए! कब खुशी की लहर खत्म हो सकती है? सागर में कब लहरें खत्म होती हैं क्या? नदी में लहर उठती नहीं। सागर में तो लहरें उठती रहती हैं। तो मास्टर सागर हो ना। फिर ईश्वरीय खुमारी वा ईश्वरीय खुशी की लहर कब खत्म हो सकती है? खत्म तब होती है जब सागर से सम्बन्ध टूट जाता है; अर्थात् साथ और हाथ छोड़ देते हो तब खुशी की लहर समा जाती है। अगर सदा साथ का अनुभव करो तो पाप कर्म से भी सदा सहज बच जाओ; क्योंकि पाप कर्म अकेलेपन में होता है। कोई चोरी करता है, झूठ बोलता है वा कोई भी विकार वश होता है जिसको अपवित्रता के संकल्प वा कर्म कहा जाता है, वह अकेलेपन में ही होता है। अगर सदा अपने को बाप के साथ-साथ अनुभव करो तो फिर यह कर्म होंगे ही नहीं। कोई देख रहा हो तो फिर चोरी करेंगे? कोई सामने-सामने सुन रहा हो तो फिर झूठ बोलेंगे? कोई भी विकर्म वा व्यर्थ कर्म बार-बार हो जाते हैं तो इसका कारण यह है कि सदा साथी को साथ में नहीं रखते हो अथवा साथ का अनुभव नहीं करते हो। कभी-कभी चलते-चलते उदास भी क्यों होते हो? उदास तब होते हैं जब अकेलापन होता है। अगर संगठन हो और संगठन की प्राप्ति हो तो उदास होंगे क्या? अगर सर्वशक्तिवान बाप साथ है, बीज साथ है; तो बीज के साथ सारा वृक्ष साथ है, फिर उदास अवस्था कैसे होगी? अकेलापन ही नहीं तो उदास क्यों होंगे? कभी-कभी माया के विघ्नों का वार होने के कारण अपने को निर्बल अनुभव करने के कारण परेशान स्टेज पर पहुंच जाते हो। भलेवान का साथ भूलते हो तब निर्बल होते हो और निर्बल होने के कारण अपनी शान को भूल परेशान हो जाते हो। तो जो भी कमजोरियां वा कमी अनुभव करते हो, उन सभी का कारण क्या होगा? साथ और हाथ का सहारा मिलते हुए भी छोड़ देते हो। समझा? कहते भी हो कि सारे कल्प में एक ही बार ऐसा साथ मिलता है; फिर भी छोड़ देते हो। कोई किसको हाथ देकर किनारे करना चाहे और वह फिर भी डूबने का प्रयत्न करे तो क्या कहा जाऐगा? अपने आपको स्वयं ही परेशान करते हो ना। बहुत समय से इस सृष्टि में रहते हुए अभी भी यही परेशानी की स्थिति अच्छी लगती है? नहीं, तो बार-बार उस तरफ क्यों जाते हो? अभी जल्दी-जल्दी चलना है। स्पीड तेज करनी है। सार को अपने में समा लिया तो सारयुक्त हो जाएंगे और असार संसार से बेहद के वैरागी बन जाएंगे। अच्छा।

सदा साथ और हाथ लेने वाले बेगमपुर के बादशाहों को नमस्ते।